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श्री राम के कोदंड से

 
अपकर्ष भस्मीभूत हो, सद्भाव का संचार हो
छल दम्भ अत्याचार का रावण
दहन हर बार हो

विस्मृत हुए करुणा,दया, उर स्वार्थ से प्रेरित सभी
है बढ़ रहा प्रति दिन कलुष ,तब चाहना है आज भी
लक्ष्मण सहित रघुनाथ का फिर
भूमि पर अवतार हो

धर्म का ध्वज हो शिथिल, भूला स्वयं पहचान को
श्रीराम के कोदण्ड से शर अब चलें संधान को
निष्पाप हो जाये अवनि, खल
दुष्ट का संहार हो
-
छल, दम्भ, अत्याचार से, है भर चुका घट पाप का
देने अभय संसार को, प्रभु आगमन हो आप का
अवमुक्त हो जाए धरणि, हम पर
अमित उपकार हो

- प्रो. विश्वम्भर शुक्ल
१ अक्टूबर २०२५

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