मर्यादा संग शक्ति का
प्रतीक बना कोदंड
देख अविनय के भाव को
होता रहा प्रचंड
रघुनन्दन के तरकश में अस्त्र
यह कड़े बाँस का
प्रत्यंचा संग भृकुटि ताने
थमता दृग हर साँस का
निष्फल होता है नहीं चुभ जाए
शर-फाँस का
लक्ष्य बेधने निकल पड़ा
काँपने लगा भूखंड
कोदंड नामक यह धनुष साथी है
श्रीराम का
हठ दुराग्रह का शत्रु मित्र
पुरु निष्काम का
सागर से पथ पाने में अनुनय था
न काम का
वरुण देव देख घबराए
प्रत्यंचा दिव्य अखंड
दंडकारण्य में निर्मित किया कई
असुर संहार
रावण सेना थी भयभीत कोदंड का
सुन टनकार
कुम्भकर्ण के काटे पाँव जब हुई
उससे तकरार
कोदंड चमक उठा ऐसे
नभ में ज्यों मार्तंड
मन के अंदर लंका हो कोदंड हमे
बनना होगा
छल कपट को त्यागकर मर्यादा से
तनना होगा
दसमुख का हो विनाश उसे सदा
कुचलना होगा
हर काल सच्चाई बने
ऐसा निर्मित हो प्रखंड
१ अक्टूबर २०२५