अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

      उठो राम! कोदंड उठाओ

 
हे 'कोदंड' तुम्हारी महिमा कितना करें बखान
त्रेता युग से कलयुग तक
सब करते हैं सम्मान

सूर्यवंश की तुम शोभा हो सूर्यवंश के रक्षक
समर भूमि में साथी प्रभु के राक्षस कुल के भक्षक
राम चरित मानस भी करता जगह जगह गुणगान
​हे 'कोदंड' तुम्हारी महिमा
कितना करें बखान

हे कोदंड राम के हाथों सदा रहे तुम शोभित
धर्म की रक्षा करने को ही किये गये तुम निर्मित
तुम पर वरदहस्त है प्रभु का तुम्हें अक्षय वरदान
​हे 'कोदंड' तुम्हारी महिमा
कितना करें बखान

रामचन्द्र ने प्रत्यंचा जब तानी क्रोधित होकर
हाथ जोड़कर खड़ा हुआ तब सिंधु तुम्हीं से डरकर
तुमसे थर थर काँपा करते बड़े बड़े बलवान
​हे 'कोदंड' तुम्हारी महिमा
कितना करें बखान

भले बाँस के बने हुये तुम फिर भी हो बलशाली
तुमसे छोड़े गये बाण सब कभी न जाते खाली
तुममें शक्ति अपार है फिर भी नहीं तुम्हें अभिमान
​हे 'कोदंड' तुम्हारी महिमा
कितना करें बखान

- राम अवध विश्वकर्मा
१ अक्टूबर २०२५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter