अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

          फिर कोदंड उठाओ

 
बुला रही है प्यासी धरती
श्याम जलद बन छाओ
फिर से आओ राम धरा पर
आओ-आओ-आओ

जहाँ रोशनी को आना था
अंधकार छाया है
रामराज्य का स्वप्न दिखा था
असुर राज आया है

दुष्टों की दण्डित करने को
फिर कोदण्ड उठाओ

यहाँ अपहरण होते हैं अब
नित-नित सीताओं के
और पृष्ठ फाड़े जाते हैं
वन्दित गीताओं के

क्षरण हुआ नैतिक मूल्यों का
फिर से पाठ पढ़ाओ

तप्त धरा उद्विग्न पवन है
सागर खौल रहा है
अनाचार बढ़ कर अपने
पँखों को तोल रहा है

कांप रही लौ मानवता की
फिर से ज्योति बढ़ाओ

ऐसी आई रात कि जिसका
दिखता नहीं सवेरा
कालनेमियों की जमात ने
बना लिया है डेरा

भ्रमजालों के तार काट कर
स्वर्ण रश्मि फैलाओ

- मधु प्रधान
१ अक्टूबर २०२५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter