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         कोदंड उठाना पड़ता है

 
जब न्याय व्यवस्था हो अनुचित
अपराध भयंकर हों अगणित
जब धैर्य मान्य हो, दुर्बलता
कोदंड उठाना पड़ता है

जब पावनता में पाप दिखे
शुचि मर्यादा को शाप मिले
रिश्ते पल-पल हों तार-तार
संबंधों को संताप मिले

सीताओं का हो शील हरण
तन स्वीकारे जब विवश-मरण
पुरुषोत्तम, तजकर संयमता
निज शौर्य दिखाना पड़ता है
कोदंड, उठाना पड़ता है

जब झूठ सत्य से युद्ध लड़े
हों परिजन-स्वजन विरुद्ध खड़े
सुख काल कोठरी में बंद
अपराधी मिलें प्रबुद्ध खड़े

जब दिशाहीन हों जाएँ युवा
सत्ताएँ हों गूँगी बहरी
तब शान्ति-सुरक्षा के हित मे
भुजबल अपनाना पड़ता है
कोदंड, उठाना पड़ता है

जब अनुनय -विनय लगे लघुता
विघटित वर्गों में हो समता
अभिमान स्वयं पर बढ़ जाए
सन्देह जनित तन की प्रणता

उत्सव आक्रोश जगाते हों
कुटिया को महल सताते हों
मद, मोह, दर्पता हरने को
निज रूप दिखाना पड़ता है
कोदंड, उठाना पड़ता है

- डॉ.भावना तिवारी
१ अक्टूबर २०२५

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