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          कोदंड श्रांत पड़ा हुआ है

 
न्याय मौन, सच थका हुआ है
कोदंड श्रांत पड़ा
हुआ है

नीति कहीं कोई ना दिखती
निज स्वारथ की तूती बजती
भ्रष्ट तंत्र का जाल बिछाता
समय शिकारी खड़ा हुआ है
कोदंड श्रांत पड़ा
हुआ है

गाँव-गली रावण ही रावण
भगवन बैठ रहे किस आँगन ?
जनमन पर संकट का साया
द्वेष कपट छल बढ़ा हुआ है
कोदंड श्रांत पड़ा
हुआ है

मंचो पर भाषण गरज रहे
नफ़रत के सायक बरस रहे
मानवता का सुर बिसराता
दुष्ट दशानन अड़ा हुआ है
कोदंड श्रांत पड़ा
हुआ है

-- आभा खरे
१ अक्टूबर २०२५

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