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प्रभु-कर कोदण्ड

 
प्रभु-कर कोदंड, प्रत्यंचा चढ़ी है
बाण गर छूटा, तो फिर तुम क्या करोगे
 
बाण तब छूटा था, जब इन्द्र सुत ने
कर दिया घायल माँ सीता के चरण को
न बचाया इन्द्र ने, न देवताओं ने
याचना की, नेत्र खोया, फिर बचा था।
प्रभु- कर कोदंड, प्रत्यंचा चढ़ी है
अशिष्टता जयंत सी, तुम कब तजोगे
 
तीन दिन सागर से विनती की प्रभु ने
समझ ही पाया नहीं, घमण्डी जलधि
कोदंड ने जब सोखना चाहा वारिधि
सिर झुकाया, मार्ग दिया, स्व बचाया
प्रभु कर कोदंड, प्रत्यंचा चढ़ी है
जल थल की धरणी, प्रलय तुम कब रुकोगे
 
आओ भगवन, कोदंड अब सक्रिय बना लो
खींच लो कमान, दुष्टों को चेता दो
रावणों के राज्य में प्रवेश करते
सत्य की जय बोलते, असत्य मिटा दो
प्रभु- कर कोदंड, प्रत्यंचा चढ़ी है
बाण गर छूटा तो फिर तुम क्या करोगे

- मधु संधु
१ अक्टूबर २०२५

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