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रघुवर
कोदंड धारिये
(दोहे) |
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रामचरित के रूप में, तुलसी
का उपहार।
सीखे मानस धरम को, मन में है उजियार।।
पापी को अब डर नहीं, सत्य हुआ मजबूर।
वाण भेद कोदंड से, खंडित करो गुरूर।।
राम राज के नाम से, फैला झूठ घमंड।
धारण कर कोदंड फिर, देना इनको दंड।।
कलयुग के रावण यहाँ, करते मोहित पाश।
रघुवर कोदंड धरिये, करिये दानव नाश।।
त्राहिमाम ये जग हुआ, राघव कृपानिधान।
विजयादशमी पर्व पर, करो पाप संधान।।
- स्मृति गुप्ता
१ अक्टूबर २०२५ |
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