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तत्पर है कोदंड
(दोहे)

 
मर्यादा के सामने, मद के लाखों खंड
शुभ की सत्ता के लिए, तत्पर है कोदंड

करते यहाँ विभेद जो, फैलाते पाखंड
खींच डोर कोदंड की, राम दीजिए दंड

अनाचार का राज है, रोता जम्बू-खंड
आओ अब श्रीराम जी, हाथ लिये कोदंड

सूखा दर्प समुद्र का, आया शरण जयंत
रघुपति के कोदंड ने, किया अशुभ का अंत

मक्कारों की मौज है, सच्चाई को दंड
धारण करिए राम जी, फिर अपना कोदंड

पानी-पानी मद हुआ, हारे असुर प्रचंड
मर्यादा के हाथ में, शोभित है कोदंड

ताकि डोर कोदंड की, हर ले सब दुख-दंड
मही राम के नाम का, करती जाप अखंड

- डॉ. शैलेश गुप्त 'वीर'
१ अक्टूबर २०२५

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