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महिमा है कोदंड की
(दोहे)

 
कण्व ऋषि का घोर तपस, छूटे जिससे प्राण
उससे ही कोदंड का, हुआ नवल निर्माण

सज्जन को देता अभय, दुष्टों को भय युक्त
महिमा है कोदंड की, पतित पाप से मुक्त

लक्ष्य भेद ही लौटता, जब जाता कोदंड
करता अरि के दर्प को, चूर-चूर कर खंड

रखते हरदम साथ थे, बाण संग कोदंड
धनुष बाण श्री राम का, करता चूर घमंड

बना हुआ था बाँस से, लेकिन बहुत कठोर
मंत्रों से वह सिद्ध था, कभी न टूटी डोर

प्रत्यंचा पर जब चढ़ा, किया लक्ष्य को भेद
कोई हो छोटा बड़ा, करते नहीं विभेद

निसिचर विहीन हो धरा,थे संकल्पित राम
पुरुषोत्तम श्री राम को, करिए सदा प्रणाम

- कामिनी श्रीवास्तव 'कीर्ति'
१ अक्टूबर २०२५

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