अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

निपुण कोशलाधीश
(दोहे)

 
विद्या में कोदंड के, निपुण कोशलाधीश
महावीर के इष्ट वे, हैं सबके वे ईश

राम रसायन पास जो, करो शिला विश्राम
निद्रा आवे चैन की, पूरन हों सब काम

अंधकार अवगुण बड़े, गुण भी एक महान
विचलित कर पैदा करें, सम्मुख कृपा निधान

रूप बदलकर आ ग़या, रावण सबके बीच
तकनीकी हैं शीश दस, जलें न रस्सी खींच

राम अगर ओझल हुए, होगा फिर कोहराम
हदबंदी होगी विफल, बिगड़ें सारे काम

युग युग बदली धात्री, युग युग कृपानिधान
नहीं बदल पाया कभी, मन अपना अभिमान

विजय पर्व ले आ गया, फिर से उनकी याद
हर्षित हो कर कह रहे, सब अपनी फरियाद

- कल्पना मनोरमा
१ अक्टूबर २०२५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter