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         धन्य धन्य कोदंड

 
धन्य धन्य कोदंड धनुष जिसकी लीला है न्यारी
राम हस्त में शोभित है जो दुष्टों का संहारी

राक्षस वन में काँप उठें थे वार तीर का सहकर
पहुँच गए परलोक मचाते थे आतंक जो भारी

राम न केवल योद्धा है वे हैं मर्यादा रक्षक
उनका व्रत और मौन है उनकी है कोदंड से यारी

जनकपुरी में शिव का धनुष उठाया था इक पल में
रघुवर के मन गूंजी सहसा एक प्रेम किलकारी

यूं तो लक्ष्मण, हनुमत, वानर सेना का था सहारा
पर कोदंड साथ में था तो दुष्ट दमन था जारी

रावण ने अपने छल से दुष्कर्म किया था जैसा
दमन किया कोदंड ने उसका जाऊँ मैं बलिहारी

‘शरद' उठाएँ हम भी इक कोदंड भाईचारे का
प्रेम जहाँ हो और न हो इक दूजे से गद्दारी

- शरद तैलंग
१ अक्टूबर २०२५

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