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कोदंडधारी राम

 
अवधपुरी में कौशल्या के धाम विराजे हैं
बाल-रूप में कोदंडधारी राम विराजे हैं

दर्शन आस लिए देहरी पे आँखें बैठी थी
स्वर्ण मुकुट में श्यामवर्ण अभिराम विराजे हैं

घर-आँगन-जंगल-रस्तों ने तारे टाँक लिए
राम-लला की अगवानी में गाम विराजे हैं

रावण जैसे आततायी का अंत सुनिश्चित कर
भक्तों के हृदयों में सुबहो-शाम विराजे हैं

हरि के हाथों के कोदंड से जब-जब शर निकले
दुष्टों को कर्मों के दे परिणाम विराजे हैं

'रीत' जिन्हें शबरी ने पाया जूठे बेर खिला
वे मर्यादा - पुरुषोत्तम हर ठाम विराजे हैं

-परमजीत कौर 'रीत'
१ अक्टूबर २०२५

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