आस्ट्रेलिया से कवि सम्मेलन
|
|
|
टीन की छत
सामने टीन की छत
उसके आगे नीचा पर्वत
उसके आगे थोड़ा बड़ा पहाड़
उसके आगे थोड़ा और बड़ा पहाड़
चलो देखते हैं क्या है उसके आगे
एक पैर रखा टीन की छत पर
दूसरा नीचे पर्वत पर
अब छलाँग लगाते हैं बड़े पहाड़ पर
एक छलाँग और, और बड़े पहाड़ पर
अब देखते क्या हो बेहूदों,
नीचे कूदो!
रुको! रुको!! रुको!!
मत कूदो
ये तो पता चल ही गया
क्या है पर्वतों के पार
वही टीन की छत!
कुपोषण
यमदूत यमराज को रिपोर्ट सुना रहा था
यमराज को गुस्सा आ रहा था
क्या कहा, ये भी भूख से मरा
कहते हुए–
मौताधिपति, पड़ोसियों ने तो हमें यही बताया।
घर में नहीं थे अन्न के दाने
ये लगा घास की रोटी चबाने
महाजन को ज़रा भी दया नहीं आई
बिना पैसे अनाज की बोरी नहीं खुल पाई
इस प्रकार हे डेठाधिश, ये भूख से मर गया
राम नाम सत्य कर गया।
यमराज सुनकर पलभर को हुए उतावले
फिर बोले बावले,
ये भूख से नहीं, कुपोषण से मरा है।
इंसान द्वारा इंसान के शोषण से मरा है।
आँखें
चलता हूं तो खुली रखता हूं पैरों की आखें
फिसलता हूं तो खुली रखता हूं हथेलियों की आँखें
टाइप करते वक्त खुली रखता हूं
अपनी उंगलियों के शिकंजों की आँखें
और ड्राइव करते वक्त खुली रखता हूं
पैरों के पंजों की आँखें।
जब पलटता हूं तो खुली रखता हूं पीठ की आँखें
गिरता हूं तो खुली रखता हूं पूरी देह की आँखें
मजदूरी करता हूं खुली रखता हूं पेट की आँखें
कुछ तय करता हूं तो खुली रखता हूं रेट की आँखें।
बुराइयां होती हैं तो खुली रखता हूं कान की आँखें।
पड़ोसियों के लिए खुली रखता हूं मकान की आँखें।
रसोई में कुछ होता है तो
खोल लेता हूं नाक की आँखें।
अपमान की संभावना में
खोल लेता हूं अपनी साख की आँखें।
ज्ञान की कामना में खोलता हूं
अंदर के पुस्तक की आँखें।
क्रोधित होता हूं तो खोल लेता हूं मस्तक की आँखें।
जब बारिश होती है तो मिचमिचाता हूं
और बूँदों से बचाता हूं खोपड़ी की आँखें
लेकिन जब तू सामने होती हैं तो बंद हो जाती हैं
सारी! सारी आँखें।
— अशोक चक्रधर |
|
क्रोध
क्यों तू आवेग का ज़ख़ीरा है, हर समय आत्मा अधीरा है।
क्रोध को व्यर्थ ख़र्च मत करना, क्रोध तो कोहिनूर हीरा है।
तू अगर माफ़ किए जाएगा रास्ता साफ़ किए जाएगा।
उसका तू तो करेगा दूना कद वो तुझे हाफ किए जाएगा।
शब्द
मेरे शब्द शब्द नहीं हैं, डूबते को सहारे के तिनके हैं।
और मेरे भी कहाँ है वे शब्द, पता नहीं किन किनके हैं।
लो तुम्हें दे रहा हूं गिन गिनके, तुम पर खर्च हो जाएँगे
अगर तुम हो पाओगे इनके।
मेरे शब्द शब्द नहीं हैं, डूबते को सहारे के तिनके।
चींटी
चींटीं चली है देखो तितली का पंख लेकर
लहरें चलीं हैं देखो हाथों में शंख लेकर
तू भी तो कुछ किया कर बैठा रहेगा कब तक
हालात आ रहे हैं बिच्छू का डंक लेकर
तितली
एक डाल पर खिली हुई थी एक तितली
कितने फूल वहाँ आ कर मँडराए थे
बादल लेटा रहा धूप में देर तलक
उसके उपर एक बदली के साए थे।
आत्महत्या
सामूहिक आत्महत्या कर ली परिवार ने
तो कहा उत्तराधिकारी रिश्तेदार ने
कृपया इनका वारिस किसी और को बनाए
इन्हें फूंकने को लकड़ियां कहाँ से लाएँ
फिल्म का दृश्य
गोदाम भरे पड़े हैं
लोग फिर भी मरे पड़े हैं
ज़मादार लाशों को कूड़े की तरह ढो रहा है
हे भगवान! ये क्या हो रहा है?
भगवान ने अधर बड़ी मुश्किल से खोले
कराहते हुए बोले,
ये दृश्य मेरी फ़िल्म से निकाल दो
फिलहाल दो बूँद गंगाजल मेरे मुँह में भी डाल दो।
संकट का दौर
ज़रा करिए ग़ौर
संकट का दौर
और आपके चेहरे पर इतनी प्रसन्नता, इतनी खुशी
वे बोले, दो वक्त का राशन कम नहीं पड़ेगा
घर के दो बंदों ने कर ली है खुदकुशी।
|
|