माँ को पत्र
तीसरा है प्रहर हर संगीत जीवनगान है
मंच पर आए गयों का मान और सम्मान है
प्रथम है जिसने मिटा दी इस कथा की हर व्यथा
पौध एक ऐसी लगाई सूर्य अब तक न ढला
माँ तुझे शत शत नमन जीवन सुशोभित कर दिया
विश्व में मुझसे भी बढ़कर क्या कोई धनवान है
मंच पर आए गयों का मान और सम्मान है
धैर्य तेरा था सँवारी जिसने मेरी धृष्टता
मेघ और तूफ़ान में तू ही बनी थी रक्षिता
धीठ थी ऐसी गई मैं फिर उसी गुलज़ार में
नट नटी जादू चलाते थे भरे बाज़ार में
बस उसी दिन से हमारे मार्ग छिन भिन हो गए
मैं तरसती रही मेरे पिता भी थे खो गए
आज आई हूँ उसी ऋण को चुकाने के लिए
आरती के दीप को फिर से जलाने के लिए
खोल दे पट मा क्षमा कर दे समय बलवान है
हाथ में अपने यहाँ बस एक ढलती शाम है
कल सुबह होने से पहले हाट ये उठ जाएगी
शेष जो है रात वह एक भ्रमित अनुदान है
मंच पर आए–गयों का मान और सम्मान है
भूल जा संघर्ष को तू देख फूलों की कतारें
घर तेरा सुरभित करेंगे कल यही वंशज हमारे
भूल से मैंने किया था विघ्न कल तेरे भजन में
आज हर स्वर में तेरे बैठे स्वयं भगवान हैं
तीसरा है प्रहर हर संगीत जीवनगान है
मंच पर आए–गयों का मान है सम्मान है
—शैलजा चंद्रा
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