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आस्ट्रेलिया से कवि सम्मेलन  


 

 

 

रंगीन पतंगें

अच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगे
काली नीली पीली भूरी लाल पतंगे

कुछ सजी हुई सी मेलों में
कुछ टँगी हुई बाज़ारों में
कुछ फँसी हुई सी तारों में
कुछ उलझी नीम की डालों में
कुछ कटी हुई कुछ लुटी हुई
पर थीं सब अपनी गाँवों में
अच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगे
काली नीली पीली भूरी लाल पतंगे

था शौक मुझे जो उड़ने का
आकाश को जा छू लेने का
सारी दुनिया में फिरने का
हर काम नया कर लेने का
अपने आँगन में उड़ने का
ऊपर से सबको दिखने का
कैसी अच्छी लगती थीं बेफिक्र उमंगें
अच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगे
काली नीली पीली भूरी लाल पतंगे

अब बसने नए नगर आया
सब रिश्ते नाते तोड़ आया
उड़ने की अपनी चाहत में
लगता है मैं कुछ खो आया
दिल कहता है मैं उड़ जाऊं
बनकर फिर से रंगीन पतंग
कटना है तो फिर कट जाओ
बनकर फिर से रंगीन पतंग
लुटना है तो फिर लुट जाऊं
बनकर फिर से रंगीन पतंग
फटना है तो फिर फट जाऊं
बनकर फिर से रंगीन पतंग
मैं गिरूं उसी ही आंगन में
और मिलूं उसी ही मिट्टी में
जिसमें सपनों को देखा था
जिसमें अपनों को खोया था
जिसमें मैं खेला करता था
जिसमें मैं दौड़ा करता था
जिसमें मैं गाया करता था सुरदार तरंगें
जिसमें मुझे दिखती थी वो रंगीन पतंगे

काली नीली पीली भूरी लाल पतंगे
अच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगे
काली नीली पीली भूरी लाल पतंगे

—अब्बास रज़ा अल्वी

अहसास

जिस दिन हिंदू करेंगे मस्ज़िद की तामीर
मुसलमान बनवाएँगे मंदिर की प्राचीर
उस दिन दोनों करेंगे उस क्षण का अहसास
घायल हुए रहीम तो रोएं तुलसीदास

तेज़ हवा का झोंका

फिर तेज़ हवा का ये झोंका
सावन की याद दिलाता है
शायद तुमने फिर याद किया
चिठ्ठी का रंग बतलाता है
शायद अमिया के पेड़ों में
फिर बौर नया लग आया हो
कोयल की गूंजी कू कू ने
हर गीत मेरा दोहराया हो
फिर पंछी डाल पर डोला हो
हरर गुंचा गुंचा झूला हो
बीते बचपन की यादों में
क्यों बिछड़ा पल तड़पाता है

फिर तेज़ हवा का ये झोंका
सावन की याद दिलाता है
शायद तुमने फिर याद किया
चिठ्ठी का रंग बतलाता है
शायद पीपल की छांव में
इक याद सताने लगती हो
बीते बचपन की यादों में
एक बात रूलाने लगती हो
क्यों रिश्ते नाते टूट गए
और साथी सारे छूट गए

किस्मत ने कैसी चाल चली
क्यों हर पल तुम्हें रूलाता है
शायद तुमने फिर याद किया
चिठ्ठी का रंग बतलाता है

—अब्बास रज़ा अल्वी
९ नवंबर २००५

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