दीवाली की महिमा का,
अँधियारे में गरिमा का,
आशा का दीप जलाना,
दूजे को राह दिखाना।
अपनी कमियों पर ऐंठे
दूजों की हँसी उड़ाते,
दुर्गंध कहाँ से जाए
जब आत्मसात मैलापन।
उनसे तो वे निर्मल हैं
मानवता जहाँ धरम है
धर्मों की निंदा करना
वह निंदनीय जीवन है।
सीमा में बँधा न दीपक
आँधी से बुझा न दीपक
हृदय से जिसे जलाया
वह अमर प्रेम है दीपक।
दीवाली तुम्हें मुबारक
जन जन में खुशी भरी हो।
नयनों में सजल नदी हो
जीवन रसमय गगरी हो।
जग में अब युद्ध नहीं हो
जन-जन मे शांति फैले।
विश्वास का दीप जलाना
जग की बगिया महकाना।।
-सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
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