दीप से दीप जलें बिछडों को हर मीत मिलें।
इस अमावस्या में तम की हर कालिमा मिटे।
मुखरित हों हृदय सुमन पायल धुन सुन सुन
कौन गा गया ये गीत मन बगिया सुमन खिले।
बैर को मिटाना है हर व्यथित को हँसाना है।
जीवन को जगाकर अग्रसर हो जाना है।
प्रगति का दीप ला के हर पाथ को सजाना है।
विश्व उपवन में शांति तरु को लगाना है।
आओ एक दीप आज शांति का जलाए हम।
जिसके उजियारे में द्वेष कटुता को भुलाएँ हम।
मंगल कामना करें यही प्रभु से ही सब हम।
बिसरा के सकल भ्रम दीप माला सजाएँ हम।
देखो मन विहग मेरा गाता है चिहुँक चिहुँक।
दीपों की ज्योति में खोजता है चिरंतन कुछ।
वीणा की तान में मधुरिम उस मुस्कान में।
कौन छुपा देता है ऐसा एक अलौकिक सुख।
सुन-सुन वह धुन मन गाता गुन-गुन-गुन।
मन तंत्री झंकृत हो पा गई जैसे खोई धुन।
रजनी भी सजनी-सी सजी है आज अपने मन।
कुटिया मेरी धन्य हुई पाकर के दुर्लभ दर्शन।
अपने घनश्याम को खोजती होगी राधा कहीं।
वंशी की लय में भूली होगी निज तन मन।
दीपक तो कितने जलाए होंगे प्रिय आगमन हेतु।
आएँगे कभी तो सुधि लेने मेरे यसुदानंदन।
-भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'
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