तेरे मन में, मेरे मन में
दीपक एक जलाएँ
अँधियारा तो बहुत बिखेरा
अब प्रकाश फैलाएँ
चलो दीपक एक जलाएँ
ना तेरे घर सूरज आता
ना मेरे घर चाँद दिखाता
तेरा मेरा अंतस दमके
आशीष ऐसा पाएँ
चलो दीपक एक जलाएँ
तेरे मन की मिटे मलिनता
मेरे मन की हीन भावना
हम तुम दोनों ज्योतिर्मय हों
चलो गले लग जाएँ
चलो दीपक एक जलाएँ
झूठ प्रवंचना बहुत हो गई
दिन बीता और रात हो गई
तेजोमय सब जग हो जाए
संग दीपोत्सव मनाएँ
चलो दीपक एक जलाएँ
-नीरज शुक्ला
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