वह मंगल दीप दिवाली थी
दीपों से जगमग थाली थी
कोई दिये जला कर तोड़ गया
आशा की किरन को रोक गया
इस बार न ये हो पाएगा
अँधियारा ना टिक पाएगा
कर ले कोशिश कोई लाख मगर
कोई दिया न बुझने पाएगा
जब रात के बारह बजते हैं
सब लक्ष्मी पूजा करते हैं
रात की कालिमा के लिए
दीपों से उजाला करते हैं
दिवाली खूब मनाएँगे
लड्डू और पेड़े खाएँगे
अंतरमन के अँधेरे को
दीपों से दूर भगाएँगे
- गौरव ग्रोवर
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