अमावसी रात
कज्जुल कज्जुल आसमान
तिमिर अँधकार में गुम हुआ
चाँद का दर्पण
अब कैसे निहारे रूप?
सलोनी अभिसारिका रजनी
दीपों के आलोकित पथ पर
ठंडी कातिर्की बयार के पर ले
ढूँढने निकली अबराया आरसी।
घर आँगन में
द्वारे चौबारे जगमगाते दीप
सुदूर में झिलमिलाती दीपों की लड़ियाँ
महालक्ष्मी के मंदिर के दान दीपों की
ओझल होती हुई कतारें
दीपों की थाली ले
दीप सजाती तुम्हारी
दीप-शिखा-सी काया
दीपों की उष्माई से
लौ-सी लुनाई हुआ आनन
आज तो दीपों का मेला है।
दिवाली की रात
आज दीपों का मेला है
बड़ी लगन से घर को सँवारा है
छम से उतर आना-
रंगोली रचे आँगन में
प्रेम रस बरसा देना सर्वत्र
जगमगा देना-
इस घर को पूरे बरस
दीपमालिके तेरा स्वागत है।
-राम गुप्ता
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