दूर जलता दीप है वो
मृत्तिका की अंजुली से
अनगिनत इन मोतियों को
कौन अर्पित कर रहा है
झिलमिलाती ज्योतियों को
चाँद है या सीप है वो
दूर जलता दीप है वो
रात की खामोशियों में
गुनगुनाता-सा रहा है
कुछ सुनी कुछ अनसुनी-सी
धुन सुनाता-सा रहा है
शांत है या गीत है वो
दूर जलता दीप है वो
आँधियों के साथ रहकर
अंत है उसका सुनिश्चित
जानता है फिर ना जाने
जल रहा क्यों विश्व के हित
सच कहूँ यह प्रीत है वो
दूर जलता दीप है वो
-अमित कुलश्रेष्ठ
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