अंतर्मन में दीप जलाएँ
अंतस्तम को दूर भगाएँ
स्नेहसिक्त बाती को करके
दया का भरकर उसमें तेल
क्षमा की देहरी पर रखकर
मन से मन का कर लें मेल
रागद्वेष का तिमिर मिटाकर-
प्रेम प्रकाश फैलाएँ
अंतर्मन में दीप जलाएँ
दीपपर्व आता है मन को
ज्योतिर्मय करने को
क्लेश और कुंठा की कलुषित
छाया को हरने को
मानवता की सुंदर धुन पर-
गीत प्रेम के गाएँ
अन्तर्मन में दीप जलाएँ
-जगदीश कापरी
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