घनघोर रात्रि-तम हरने को
छोटा-सा दीप जलाया है
कुछ यादों कुछ वादों के संग
नया प्रकाश जगमगाया है
नव मुस्कानों से मदमाती
खुशहाली घर में आई है
नव स्वर के नूतन गीतों ने
हर एक दिशा गुँजाई है
दीप दिवाली के जलते हैं
घर-घर लक्ष्मी आई है
दीपों की पावन ज्योति ने
आशा की राह दिखाई है
अब तम में क्यों डूबा है जन
चेहरा अब क्यों मुरझाया है
दूर क्षितिज पे भोर जगी
फिर नया उजाला आया है।
-नीना मुखजी
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