अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ज्योति पर्व
संकलन

 

दीप जलाओ खुशी मनाओ

 

दीप जलाओ ख़ुशी मनाओ
आई दिवाली आई

रात अमावस की तो क्या,
घर-घर हुआ उजाला
सजे कंगूरे दीप शिखा से,
ज्यों पहने हों माला
मन मुटाव मत रखना भाई,
आई दिवाली आई

झिलमिल-झिलमिल बिजली की
रंग बिरंगी लड़ियाँ
नन्हे मुन्ने हाथों में वह
दिलफ़रेब फुलझड़ियाँ
दीवाली है पर्व मिलन का,
भरत मिलहिं निजि भाई,

चौराहे, मंदिर, गलियों में
लगे हुए हैं मेले
नज़र पड़े जिस ओर दिखे,
भरे खुशी से चहरे
चौदह बरस बाद लौटे हैं,
सिया-लखन -रघुराई

दीवाली के दिन हैं जैसे,
घर में हो कोई शादी
अंदर-बाहर होए सफ़ेदी,
खुश अम्मा, खुश दादी
गोवर्धन को धरे छंगुरिया
इन्हीं दिनन गोसाईं

-निर्मल भारती

आज है दीवाली की रात

उजाले की होगी बरसात।
आज है दीवाली की रात।

जलाओ आज दीप से दीप
निशा में भी हो उषा प्रतीत
लिए उर में स्नेहिल सौग़ात।
आज है दीवाली की रात

उजाले का भेजो अनुबंध
तोड़कर अँधियारे संबंध
प्रभा का बहता रहे प्रपात।
आज है दीवाली की रात

तुम्हारा दीप, हमारा दीप
उजाले के हैं सभी प्रतीक
शीघ्र आएगा नवल प्रभात।
आज है दीवाली की रात।

सार्थक तभी बनेगा पर्व
द्वेषभावों का तोड़े गर्व
हृदय से हृदय मिले हों भ्रात!
आज है दीवाली की रात।

राममूर्ति सिंह 'अधीर'

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter