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दीप जलाओ ख़ुशी मनाओ
आई दिवाली आई
रात अमावस की तो क्या,
घर-घर हुआ उजाला
सजे कंगूरे दीप शिखा से,
ज्यों पहने हों माला
मन मुटाव मत रखना भाई,
आई दिवाली आई
झिलमिल-झिलमिल बिजली की
रंग बिरंगी लड़ियाँ
नन्हे मुन्ने हाथों में वह
दिलफ़रेब फुलझड़ियाँ
दीवाली है पर्व मिलन का,
भरत मिलहिं निजि भाई,
चौराहे, मंदिर, गलियों में
लगे हुए हैं मेले
नज़र पड़े जिस ओर दिखे,
भरे खुशी से चहरे
चौदह बरस बाद लौटे हैं,
सिया-लखन -रघुराई
दीवाली के दिन हैं जैसे,
घर में हो कोई शादी
अंदर-बाहर होए सफ़ेदी,
खुश अम्मा, खुश दादी
गोवर्धन को धरे छंगुरिया
इन्हीं दिनन गोसाईं
-निर्मल भारती
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