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ज्योति पर्व
संकलन

 

किरण कण

एक दीपक किरण-कण हूँ।

धूम्र जिसके क्रोड़ में है, उस अनल का हाथ हूँ मैं
नव प्रभा लेकर चला हूँ, पर जलन के साथ हूँ मैं
सिद्धि पाकर भी, तुम्हारी साधना का -
ज्वलित क्षण हूँ।
एक दीपक किरण-कण हूँ।

व्योम के उर में, अपार भरा हुआ है जो अँधेरा
और जिसने विश्व को, दो बार क्या, सौ बार घेरा
उस तिमिर का नाश करने के लिए, -
मैं अटल प्रण हूँ।
एक दीपक किरण-कण हूँ।

शलभ को अमरत्व देकर, प्रेम पर मरना सिखाया
सूर्य का संदेश लेकर, रात्रि के उर में समाया
पर तुम्हारा स्नेह खोकर भी, -
तुम्हारी ही शरण हूँ।
एक दीपक किरण-कण हूँ।

- डा रामकुमार वमा

  

दिये जला देना

दिये जला देना मेरे मन

एक तमन्ना की तुलसी पर
इक रस्मों की रंगोली पर
इक अपनेपन के आँगन में
एक कायदों की डोली पर

ख्वाब देखती खिड़की पर इक
खुले ख़यालों की छत पर भी
एक सब्र की सीढ़ी ऊपर
इक चाहत की चौखट पर भी

एक तर्जुबे के तहखाने
एक लाज की बारी में भी
एक दोस्ती की ड्योढ़ी पर
इक किस्मत की क्यारी में भी

एक मुहब्बत के कुएँ पर
नोंक झोंक की नुक्कड़ पर भी
एक भरोसे के दरखत पर
चतुराई की चौपड़ पर भी

हर कोना हो जाए रोशन
दिये जला देना मेरे मन

-राज जैन

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