पर्णकुटी में दीप जले
आकुल आतुर भरत जगे
कल लौटेंगे मेरे राम
पुन: मेरे सौभाग्य जगे
प्राचीर पे शत्रुघ्न डोले
रह रह स्वयं से बोले
कहाँ रुके हो राम
अब तो पूरे चौदह कटे
उर्मिला भी कैसे सोए
चौदह वर्ष प्राणों पे ढोए
अब हर पल युग सम है
पिया मिलन का हर्ष सताए
व्याकुल हैं सभी माताएँ
अपनी पीड़ा किसे बताएँ
यह अवधि कैसे कटी है
कौन दुख बाँटे, किसे सुनाएँ-
सभी अयोध्यावासी जाग रहे
निशा दग्ध-सी काट रहे
प्राची पर दृष्टि टिकी है
कब रघुकुल का सूर्य उगे
रह-रह अश्रुधार बहे
उठ उठ भरत पंथ लखे
कब क्षितिज पर धूलि उड़े
कब भाग, उसे शीश धरे
-सुमन कुमार घेई
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