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ज्योति पर्व
संकलन

 

आत्मदीपक

आत्मदीपक यह प्रभो! तुमने जलाए-जल रहे हैं।
कर्म का जो पथ दिखाया, प्राण उस पर चल रहे हैं।।

पूज्यवर तुमने कहा था, अंश अपना दे रहा हूँ।
कष्ट में घबरा न जाना, नाव तो मैं खे रहा हूँ।।

साथ हो हरदम इसी विश्वास में हम पल रहे हैं।
कर्म का जो पथ दिखाया, प्राण उस पर चल रहे हैं।।

हम जहाँ जाते वहीं संदेश देते सुदृढ़ मन से।
त्याग दो दुष्वृत्तियाँ साथी! रहो सुख से अमन से।।

रहो बचकर विविध आकर्षण सभी को छल रहे हैं।
कर्म का जो पथ दिखाया, प्राण उस पर चल रहे हैं।।

है जहाँ फैला अँधेरा ज्योति लेकर चल रहे हैं।
ज्योति को रखने अखंडित स्नेह से हम जल रहे हैं।।

भेंट देंगे कलुष वह विषवृक्ष बन जो फल रहे हैं।
कर्म का जो पथ दिखाया, प्राण उस पर चल रहे हैं।।

है सक्रिय संजीवनी जो हमें दीक्षा में पिलाई।
जल रही है ज्योति जो मन-प्राण में तुमने जगाई।।

लालिमा दिखने लगी है, तिमिर के कण गल रहे हैं।
कर्म का जो पथ दिखाया, प्राण उस पर चल रहे हैं।।

मार्ग जो तुमने बताया उसी पर चलते रहेंगे।
स्नेह से जलते रहेंगे, बीज से गलते रहेंगे।।

सृजनहित बलिदान होने, ह्रदय नित्य मचल रहे हैं।
कर्म का जो पथ दिखाया, प्राण उस पर जल रहे हैं।।

माया वर्मा

 

 दीपमालिका

दीपमालिका सजी हुई है,
घर आँगन में द्वारे-द्वारे।

दूर गगन से मानो उतरे,
झिलमिल-झिलमिल प्यारे तारे।

निकल पड़ी बच्चों की टोली,
लिए मिठाई गट्टा लाई।

घर-घर में पक्वान बने हैं,
चारों ओर खुशी है छाई।

किसी हाथ में फूलझड़ी है,
झर-झर झरते फूल अनार।

आतिशबाजी छूट रही है,
है दीवाली का त्योहार।

उछलो-कूदो, मौज मनाओ,
करो न कोई गंदा काम।

यही दिवस है बैठे थे जब
सिंहासन पर राजा राम।।

श्यामला कांत वर्मा

 

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