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दीप जले |
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दीप जले सज गई आरती
महक उठा घर, आँगन, कोना।
फैली है सुरभि कण-कण में,
व्याप्त इसी में प्रियतम! हो ना?
मदिर-मदिर जलते दीपक की,
बाती तुमने उकसाई है।
शुष्क हुए जाते जीवन में,
प्रेम सुधा वह बरसाई है।।
प्राण सजे गुंजित गीतों से,
खनक उठा मन का हर कोना।
दीप जले सज गई आरती,
महक उठा घर, आँगन, कोना।
गीतों की फुलझड़ियाँ छूटीं,
बंदी मन ज्यों मुक्त हुआ हो।
कलियों पर बिखरी तानों से,
मन भँवरा अनुरक्त हुआ हो।
प्रणय पराग बिखेर रहे हैं,
पुष्प ह्रदय भर-भर कर दोना।
दीप जले सज गई आरती,
महक उठा घर, आँगन, कोना।
- उषा चौधरी
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दीप जला दो दीप जला दो, दीप जला लो
स्नेह प्यार के ज्योति पुंज को
घर आँगन वन उपवन में
अंजुरी भर-भर प्रकाश पुंज को
अँधकार भरी दुनिया में बाँट दो
दीप जला दो, दीप जला दो...
स्वप्न देखें एक नया
दीपों की माला-सा उजला
धरा पर हो एक नया सवेरा
हर्ष में हो मगन सारे
कोई नयन की कोर हो ना गीली
आज मलयज को मदमस्त कर दो
मुस्करा कर दीप दान कर दो
गहन अंधेरों को दूर कर दो
ह्रदय से रोशनी के दायरे को
मुक्त कर दो, दीप जला दो...
आज
दीपावली को जिन आतंकियों ने
बरबादियों के मंज़र में
बदल दिया है
उस नफ़रत के अजगर को
कब तक हम, धैर्य रख
निरीह व्यक्तियों का ग्रास बनने दें
मत कर और मानस संहार
मत आतंक मचा
इन दीपावली की खुशियों के
पलों को मनाने दें
अन्यथा कर देंगे
तुझे विश्व से फन्ना
दीप जला दो...दीप जला लो।
-कैलाश भटनागर
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