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ज्योति पर्व
संकलन

 

धूम धड़ाका

धूम धड़ाका
बम पटाखा
जगमग-जगमग जले अनार
आया दीपों का त्योहार

ज्योति की लड़ियाँ
जली फुलझड़ियाँ
राकेट उड़ा समंदर पार
आया दीपों का त्योहार

खेल तमाशा
खील बताशा
और मिठाई की भरमार
आया दीपों का त्योहार

आँगन घर में
गाँव शहर में
कंदीलों की सजी कतार
आया दीपों का त्योहार

रात अमावस
बन गई पावस
अँधियारे को चढ़ा बुखार
आया दीपों का त्योहार

-अखिलेश श्रीवास्तव 'चमन'

  

 दीवाली

दीवाली की रात
मेरे यहाँ रतजगा है
सोने चाँदी से मढी
हर्षोल्लास से ढकी
हारसिंगार की कलियों में गुथी
सितारों जड़ा आँचल ओढ़ कर
खुशियाँ पसीने पसीने होकर नाचेंगी

सर्द हवाओ के हल्के-फुल्के
थपेड़ों के बीच
पटाखों की मधुर ध्वनि में
खील बताशों की मिठास लिए
अंजुलि भर भर प्रेम बँटेगा
ओर मेरा
गौरव दैदीप्यमान होगा

झिझकना नहीं
निसंकोच उतर जाना
रंगोली सजे आँगन में
और
काले कंबल के झुरमुट से झाँककर
दीपक की रोशनी मे निहार लेना
इस मृगनयनी की
धूसर काया का
अंग प्रत्यंग लक्ष्मी समान होगा

खीजना नहीं शर्माना नहीं
अमावस के यौवन की टीस मिटा लेना
जितने चाहो उतने
सितारे बटोर लेना
और
पूरे बरस जगमगाकर
इस धरा का
सम्मान रख लेना

- रजनीश कुमार गौड़

 

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