दीवाली
दीवाली की रात
मेरे यहाँ रतजगा है
सोने चाँदी से मढी
हर्षोल्लास से ढकी
हारसिंगार की कलियों में गुथी
सितारों जड़ा आँचल ओढ़ कर
खुशियाँ पसीने पसीने होकर नाचेंगी
सर्द हवाओ के हल्के-फुल्के
थपेड़ों के बीच
पटाखों की मधुर ध्वनि में
खील बताशों की मिठास लिए
अंजुलि भर भर प्रेम बँटेगा
ओर मेरा
गौरव दैदीप्यमान होगा
झिझकना नहीं
निसंकोच उतर जाना
रंगोली सजे आँगन में
और
काले कंबल के झुरमुट से झाँककर
दीपक की रोशनी मे निहार लेना
इस मृगनयनी की
धूसर काया का
अंग प्रत्यंग लक्ष्मी समान होगा
खीजना नहीं शर्माना नहीं
अमावस के यौवन की टीस मिटा लेना
जितने चाहो उतने
सितारे बटोर लेना
और
पूरे बरस जगमगाकर
इस धरा का
सम्मान रख लेना
- रजनीश कुमार गौड़
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