रात भर जलता रहा
यह दीप प्राणों का अकेला!
वेग लेकर नाश का आया पवन था,
शक्ति के उन्माद में गरजा गगन था,
दीप, पर, अविराम जलने में मगन था,
आ नही जब तक गई
संसार में नवस्वर्ण-बेला।
रात भर जलता रहा
यह दीप प्राणों का अकेला!
रात भर हँस-हँस सतत जलता रहा है
आँधियों के बीच भी पलता रहा है,
आतातायी का अहम दलता रहा है,
मूक हत भयभीत मानव
को दिया जगमग उजेला
रात भर जलता रहा
यह दीप प्राणों का अकेला।
- महेंद्र भटनागर
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