दिवाली के अवसर को बाकी थे दिन सात
असमंजस में पड़े हुए थे मिस्टर दीनानाथ
चलते थे मस्तिष्क में उनके कई विचार
बिन बोनस दीपावली! बेहद थे लाचार
बच्चों को थे चाहिए फुलझड़ी बम अनार
बिन गहने बीवी नहीं करती यह त्योहार
बोली 'मुझको चाहिए दस तोले का हार'
नगद नहीं तो माँग के तुम ले आओ उधार
गजब घना चक्रव्यूह था उलझे हुए सवाल
मन मंथन से फल मिला आया एक ख़याल
लक्ष्मी पूजन करने की मन में गहरी ठानी
लौटरी अबकी लगेगी थी उनकी भविष्यवाणी
गए बाज़ार टिकट हज़ार के उधार ले आए
रख मंदिर में शंख रातदिन बारंबार बजाए
दरवाज़े खिडकियाँ खोल बिजली के बल्ब जलाए
लक्ष्मी जी को खुश करने के सब पैंतरे अजमाए
बीबी बच्चों घर को भी इस काम में जुटाया
गहनों और पटाखों से उनका ध्यान हटाया
आई दिवाली निकले जब लॉटरी के नतीजे
रोके साँस बैठे थे बीबी बच्चे और भतीजे
आशाओं पे फिर गया एक बार फिर पानी
लक्ष्मी जी ने कर डाली अपनी ही मनमानी
तिलमिला के बीवी ने कर दी गुस्से की बरसात
पटाखे लगे बजने जब बेलन पड़े कसके दो चार
दिवाली को निकल गया दीनानाथ जी का दिवाला
आई समझ क्यों डरता है इस पर्व से हर घरवाला
-सुनील शर्मा
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