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ज्योति पर्व
संकलन

 

कुछ न हो तो

कुछ न हो तो एक दीपक ही जलाना द्वार पर तुम
ताकि दीवाली तुम्हारे गेह की सूनी न जाए।

चाहता था मैं तुम्हारे पास होता
रैन ये आलोक की रूठी न होती,
कल्पना वीरानियों के स्वप्न बुनकर
बैठ एकाकी कहीं आँसू न रोती,

कुछ न हो तो बूँद आँसू की चढ़ाना आरती पर
ताकि मेरी याद तुमको पीर में जीना सिखाए।

याद कर लेना मुझे जब गाँव भर में
स्वर्ण-दीपों का सवेरा मुस्कराए,
हर किरन विश्वास की कुछ तिलमिलाकर
भेद मेरे दर्द का शायद बताए,

कुछ न हो तो एक स्वर लहरी बजाना बाँसुरी पर
ताकि अधरों की पिपासा रैन में कुम्हला न जाए।

- बाबूलाल शर्मा 'प्रेम'

  

 दीवाली दीप

दीप जले दीवाली दीप हैं जले
नन्हें बच्चे प्रकाश के ये मचले

आँगन मुँडेर सजा द्वार सजा है
लहराती दीपक की ज्योति ध्वजा है
धरती पर जगर मगर तारे निकले
दीप जले दीवाली दीप हैं जले

दीप रखे हैं हमने ही धरती पर
ज्योति सदा सबको लगती है सुंदर
तीर चले अँधियारा स्वयं ही गले
दीप जले दीवाली दीप हैं जले

उत्सव है ज्योति का मनाते हैं हम
खुशियों गीत सदा गाते हैं हम
बच्चे दुनिया के आकाश के तले
दीप जले दीवाली दीप हैं जले

ऊपर भी तारे हैं नीचे भी तारे
फूलों की भांति खिले दीपक सारे
पेड़ों पर फल जैसे आज हैं फले
दीप जले दीवाली दीप हैं जले

मेहनत की ज्योति
अब जलाना हमको
धरती के कण-कण
सूरज सा चमको
हो जाएगा प्रकाश साँझ जो ढले
दीप जले दीवाली दीप हैं जले

- डॉ. श्री प्रसाद

 

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