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रंगरलियाँ |
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काली अंधेरी रात,
प्रज्जवलित दीपमालिकाओं की
गोद में शांत।
झिलमिल
प्रकाश की चकाचौंध
अंधकार पर
विजय का उदघोष।
टिमटिमाते
असंख्य दीप पुंजो की
लपलपाती लौ का मोहपाश,
सम्मोहित परवानो की अठखेलियाँ
चपल ज्योति की सुंदर छवि पर
आहुति करते प्राण।
अमावस्या हुई जगमग,
तारो के साथ चाँद का उतरना
घरो के मुँडेरो पर।
टिमटिमाते
दीपो की डाल गलबहियाँ
ज्योतिपर्व पर जग ज्योतित
हो रही रंगरलियाँ।
- बृजेशकुमार शुक्ला
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ज्योति निराली
आओ जन-जन के जीवन में
उम्मीदों के दीप जलाएँ
भूले भटके जो जीवन में
उनको रौशन राह दिखाएँ
आँगन में रंग सजे रंगोली
मुंडेरों पर दिये सजें
प्यार के बाटें खील बताशे
मीठे होवें बोल भले
सम्मान करो इस दीपक का
जो दूर करे अँधियारा
ऐसी जगमग ज्योति जगाए
सब जग हो उजियारा
बाती बुझ जाए दीये की, पर
दिल की ज्योति अमर हो
दीपक बाती जैसा जग में
सबका प्यार सफल हो
दीप्ति हो इस दीप में इतनी
थमे तूफान बढ़े खुशहाली
छाए वतन में शांति निराली
आओ मनाएँ ऐसी दीवाली
-संध्या
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