सोजा
मेरे मन के हार
मन में पड़ने लगी फुहार,
सो जा मेरे मन के हार!
चंदा ने निंदिया भिजवाई,
ख़ुशबू भरकर प्यार!
सो जा मेरे मन के हार!
मस्त हवा के झोंके आकर
तुझको करें दुलार!
सो जा मेरे मन के हार!
सपनों की दुनिया में तुझको
ख़ुशियाँ रहीं पुकार!
सो जा मेरे मन के हार!
मेरी बाहों का झूला भी
तुझे रहा पुचकार!
सो जा मेरे मन के हार!
मेरी आँखों की नदिया में
झूम रही पतवार!
सो जा मेरे मन के हार!
-रावेंद्रकुमार रवि
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गुड्डू राजा
गुड्डू राजा
गुड्डू राजा
रोता रहता बजाता बाजा।
दीदी उसकी उसे बहलाए
नित नयी कहानी सुनाए।
गुड्डू को कुछ भी न भाए
बस रोता जाए रोता जाए।
अम्मा उसे लोरी सुनाती
कभी दे थपकी सुलाती।
कभी गोद में उठाके घूमें
कभी उसे झूला झुलाती।
पापा बोले कुछ दुखता होगा
अरे कोई डाक्टर बुलाओ।
मुझे बहुत काम है
इसे भई चुप कराओ।
भैय्या चीखा अबे गुड्डू राजा
बन्द कर अपना बेसुरा बाजा।
तू यूं ही सबको तंग करता है
बसकर अब चुप करके सो जा।
. . .और गुड्डू राजा सो गया!!
— सुमन कुमार घई |
लोरी
छोटी –छोटी
बकरी
छोटी –छोटी गैया
गैया चराए मेरे
छोटे कन्हैया
छोटे– छोटे हाथ
छोटे –छोटे पाँव
ठुमक– ठुमक जाए
गोरी के गाँव
आँखों में दिखता
है आसमान
पतले –से होंठों पर
छाई मुस्कान
किलक –किलक में
सारे गुणगान
तुतली – सी बोली में
छिपे भगवान
— रामेश्वर कांबोज हिमांशु
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