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रेलगाड़ी

छुक-छुक करती आती है,
सबको निकट बुलाती है।
टिकिट खरीदो, फिर बैठो-
हँसकर सैर कराती है।

-संजीव सलिल

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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रेलगाड़ी

रेल आजकल, करे न छुक छुक
नहीं उगलती आज धुआँ है
रंग बदल चुपके से आती
बना रेल का रूप नया है।

गर्मी, सर्दी या हो बरसात
चलती रहती कभी न रुकती
बिछड़ों को है ये मिलवाती
पटरी पटरी रेल है चलती

रेल चले तो पेड़ भी चलते
दौड़ें हैं बिजली के खंबे
शाम ढले तो दिखने लगते
परछाईं के साये लंबे

रेलपेल धक्कामुक्की है
भीड़ भड़क्का साँस न आए
फिर भी देखो एक शहर से
दूजे तक है रेल ले जाए

चाय गरम पूरी भाजी की
आवाज़ों में स्वाद भरा है
केक और बिस्किट ग़रम कचौड़ी
कोल्ड ड्रिंक इक हरा हरा है

बिना टिकट न रेल पे चढ़ना
ऐसा है कह गए सयाने
परेशानियाँ बढ़ जाएँगी
टी .टी .ले जाएगा थाने

— तेजेन्द्र शर्मा


 

छुक छुक करती
 

छुक छुक करती धुआँ उड़ाती
वह देखो वह रेल है आती
सीटी दी स्टेशन आया
इंजन ने एक शोर मचाया

 

 

उतरे बैठे जल्दी जल्दी
लेकर अपना बकस औ' गठरी
खोमचे वाले खोमचा लाए
माल को बेचा दाम चुकाए

 


 

गार्ड ने दी चलने को सीटी
और दिखाई दूर से झंडी
छुक छुक करती धुआं उड़ाती
रेल सभी को लेकर चल दी

— अज्ञात

 

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