सूरज
दादा
सूरज दादा सुबह–सबेरे,
आंगन में आ जाते हैं
अपनी किरणों से हम सबकी
सर्दी दूर भगाते हैं
मई–जून जब आता है,
बेहद गरमी बरसाते हैं
तब होती है बेचैनी,
हम सचमुच जल–भुन जाते हैं
—सावित्री तिवारी आज़मी
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सूरज की किरणें
सूरज की जब किरणें
आतीं
सबके दिल की कली खिलातीं
मुर्गा जब है बाँग लगाता
तब पूरी दुनिया उठ जाती
मुरझाये से फूल भी खिलते
भीतर से फिर मधुकर उड़ते
डाल-डाल पर सुन्दरता के
दृष्य देखने को हैं मिलते
चिड़ियां भी हैं चीं-चीं करतीं
अपने हर्ष को जाहिर करतीं
कुहू-कुहू करती कोयल रानी
सुन्दर कितनी मीठी वाणी
अंधकार जब खो जाता है
सुन्दर तब जग हो पाता है।
आलस कभी न करने से ही
सुखमय जीवन हो पाता है
- छवि त्रिवेदी
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सूरज दादा
सूरज दादा करवा लो
तुम
जल्दी से उपचार
तेज़ बुखार चढ़ा है तुमको
कुछ तो करो विचार
उचित नहीं है इस हालत में
करना कुछ भी काम
कम से कम दोपहरी में तुम
करो तनिक विश्राम
—शंभूलाल शर्मा वसंत
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