लकड़ी की काठी
लकड़ी की काठी,
काठी पे घोड़ा
घोडे की दुम पे जो मारा हथौड़ा
दौड़ा दौड़ा दौड़ा घोड़ा
दुम उठा के दौड़ा
घोड़ा पहुंचा चौक में,
चौक में था नाई
घोड़े जी की नाई ने हजामत जो बनाई
टग-बग
घोड़ा था घमंडी,
पहुंचा सब्जी मंडी
सब्जी मंडी बरफ पड़ी थी
बरफ में लग गई ठंडी
टग-बग
घोड़ा अपना तगड़ा है,
देखो कितनी चर्बी है
चलता है महरौली में
पर घोड़ा अपना अरबी है
टग-बग
-गुलज़ार
|
साल
शुरू हो !
साल शुरू हो दूध
दही से
साल खत्म हो शक्कर घी से
पिपरमैंट, बिस्कुट मिसरी से
रहें लबालव दोनों खीसे
मस्त रहें सड़कों पर खेलें
ऊधम करें मचाएँ हल्ला
रहें सुखी भीतर से जी से।
साँझ, रात, दोपहर, सवेरा
सबमें हो मस्ती का डेरा
कातें सूत बनाएँ कपड़े
दुनिया में क्यों डरें किसी से
पंछी गीत सुनाये हमको
बादल बिजली भाये हमको
करें दोस्ती पेड़ फूल से
लहर लहर से नदी नदी से
आगे पीछे ऊपर नीचे
रहें हँसी की रेखा खींचे
पास पड़ोस गाँव घर बस्ती
प्यार ढेर भर करें सभी से।
-भवानी प्रसाद मिश्र |

नटखट पांडे
नटखट पांडे आए आए
पकड़ किसी का घोड़ा लाए
घोड़े पर हो गए सवार
घोड़ा चला कदम दो चार
नटखट थे पूरे शैतान
लगा दिये दो कोड़े तान
घोड़ा भगा देख मैदान
नटखट पांडे गिरे उतान
- सोहनलाल द्विवेदी
|