हुआ सवेरा
हुआ
सवेरा, गया अँधेरा,
सूरज रहा निकल
हाँ भई फक्कड़, लाल बुझक्कड़,
तू भी ढंग बदल
बुरे काम तज, राम राम भज,
मत रट मरा मरा
अपने अपने, देख न सपने,
मन रख हरा भरा
अगर मगर में, उलझ डगर में,
क्यों तू अड़ा खड़ा
मस्त उछलता, रह तू चलता,
नाम कमा तगड़ा
है बेमानी, सनक पुरानी,
उसको दूर भगा
नयी कहानी, सुना जबानी,
पिछले गीत न गा
-कन्हैयालाल मत्त |
सवेरा
सूरज की जब किरणें
आतीं
सबके दिल की कली खिलातीं
मुर्गा है जब बाँग लगाता
तब पूरी दुनिया उठ जाती
मुरझाए से फूल भी खिलते
भीतर से फिर मधुकर उड़ते
डाल डाल पर सुंदरता के
दृष्य देखने को हैं मिलते
चिड़ियाँ भी हैं चीं चीं करतीं
अपने हर्ष को जाहिर करतीं
कुहू कुहू करती है कोयल
सुंदर कितनी मीठी वाणी
अंधकार जब खो जाता है
सुंदर तब जग हो पाता है
आलस कभी न करने से ही
सुखमय जीवन हो पाता है
--छवि त्रिवेदी
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अब मत सो
हुआ सवेरा अब मत सो
झट-पट उठो हाथ मुँह धो
जगा रही हूँ, जल्दी जागो,
आँखें खोलो, आलस त्यागो.
अब चट से उठ जाओ लाल,
कहूँ चूम कर उन्नत भाल.
उठ जाओ साहस कर बच्चे
प्रात समय आलस्य न अच्छे
-प्रभा तिवारी
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