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डाल-डाल टेसू खिले, आया है
मधुमास,
मै हूँ बैठी राह में, पिया मिलन की आस।
फागुन आया झूम के ऋतु वसंत के साथ
तन-मन हर्षित होंगे, मोदक दोनों हाथ
आने का संदेश जब, लेकर चला वसंत
गाल गुलाबी हो गए, हो गई पलकें बंद।
पिघले सोने-सा हुआ, दोपहरी का रंग
और सुहागे-सा बना, नूतन प्रणय प्रसंग।
अंग-अंग में उठ रही मीठी-मीठी आस
टूटेगा अब आज तो तन-मन का उपवास
इंद्र धनुष के रंग में रंगूँ पिया मैं आज
संग तुम्हारे नाचूँ, हो बेसुध बे साज
तितली जैसी मैं उडूँ चढ़ा फाग का रंग
गत आगत विस्मृत हुई, चढ़ी नेह की भंग
रंग अबीर गुलाल से, धरती भई सतरंग
भीगी चुनरी रंग में, हो गई अंगिया तंग
गली-गली रंगत भरी, कली-कली सुकुमार
छली-छली-सी रह गई, भली-भली-सी नार
सुनीता शानू
१७ मार्च
२००८ |