जीवन के रंग संग मनवा उमंग करे
अलसाए भावों में नव रस तरंग भरे
वनदेवी हो कृपालु देती आशीष मुदित
मुसकाती कलियाँ नृत्य अंग अंग करे
शीत भीत बीत गई तुषार द्वार
बंद करे
सुप्त पड़े जीवन को मुखरित बसंत करे
धरती आकाश आज क्रीड़ा संग संग करे
जीवन की अनुभूति कैसे प्रसंग करे
हिमपात तुषार
वृष्टि वरदान है विधना का
जल रूप धारण कर जीवन संपन्न करे
जल के अभाव में जीवन कैसे रूप धरे
मरू रूप बनकर सकल जीवन अंत करे
कितनी लुभायमान लगती धरा चाँदी-सी
रवि रश्मि पाकर जिसे और शुभ
अंग करे
सबका मन जीवन
ज्योति पाकर विहँसता है
मेरे उद्गार सकल विश्व को स्पंद करें
मैं तो एक राही हूँ चलता चला जाऊँगा
पढ़ लेना गीत मेरे यदि मन पसंद करे
देखो आकाश में उड़ते हैं निर्भय खग
पंख-पखेरू प्रमुदित मनजीवन आनंद करे
भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'
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