होली
है
!!

 

रंग की बारिश



रंग की बारिश में भीगा ये जहाँ अच्छा लगा,
झूमने धरती लगी, ये आसमां अच्छा लगा।

मेल से दिन जब मिले, झूमी बहारें रात दिन,
आज हम बिछडे हैं, तो दौरे खिजां अच्छा लगा।

दूसरे की आग में तापे जिन्होंने अपने हाथ,
आज घर उनका जला, उठता धुआँ अच्छा लगा।

ईद आए, दीप जागें रंग बरसें, शान से
हमको धरती पर, फकत हिंदोस्तां अच्छा लगा।

हम किसी भी भीड के हिस्से बने ना आजतक,
बस खुदा की राह का इक कारवां अच्छा लगा।

घूम के हारे जहाँ भर में, ना पाई शांति हमने,
लौट के आए जो घर, तो आशियां अच्छा लगा।

-संजय विद्रोही
९ मार्च २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter