होली
है
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छे छंदमुक्त फागुनी रचनाएँ


आई है होली

सात रंगो में
सात सुरों-सा
रंग लिए
आई है होली

शुभ कीरत का
ताज पाग-सा
संग लिए
आई है होली

राग रंग की
अनंत शुभकामनाओं का
शंखनाद लिए
आई है होली

फागुनी पिचकारी में
रंग बरसाती
प्यार की गंध लिए
आई है होली


प्रेम का मौसम

फूलों इस प्यार के मौसम में
तुम्हारी खुशबू ने
सभी का दिल मोह लिया है
भँवरें की गुंजन से
थरथराती पत्तियों में
पुलकन है
हवा के साथ सरसराती
कोपलें भी खुल गई हैं
कितनी मधुपर्की रसपगा
अहसास है कि बाँसुरी के
सुरों की तरह
तरंगित हो रहा है जीवन
और एक नदी की तरह
घतिमान है
नीले समुन्द्र को कहता-सा कि
मुझे तुम्हारे अन्दर समाना है
मेरा स्वागत करो तुम
क्योंकि बसन्त के साथ ही
प्रेम का मौसम आता है।

चंद कदमों तक

चंद कदमों तक
चले कुछ लोग
अब भी भीगे मौसम में
पीछा करते हैं
उनकी आहटें
साथ चलते-चलते
आगे बढ़ जाती हैं
देर तक उनकी गूँजें
दौड़ती टापों की
कानों से टकराती हैं
अहसास की लंबी लंबी
आहों से
ख्याबों के चेहरे पर
खरोंचों के
निशाँ बच जाते हैं

डॉ. सरस्वती माथुर
९ मार्च २००९
फागुनी संगीत में

चलो मिल बटोर लाएँ
मौसम से बसन्त
फिर मिल कर समय गुज़ारें
पीले फूलों सूर्योदय की परछाई
हवा की पदचापों में
चिडियों की चहचहाटों के साथ
फागुनी संगीत में फिर
तितलियों से
रंग और शब्द लेकर
हम गति बुनें
चलो मिल कर बटोर लाएँ
मौसम से बसन्त
और देखें दुबकी धूप
कैसे खिलते गुलाबों के ऊपर
पसर कर रोशनियों की
तस्वीरें उकेरती है
उन्हीं उकेरी तस्वीरों से
ओस क्रण चुने
चलो मिल कर

आया है फागुन

मेहन्दी के रंग लिए
आया है फागुन
शहरों गाँवौ में
छाया है फागुन

जीवन में रस
टटोल रहा फागुन
पनघट चौपालों में था
डोल रहा फागुन

रंगों में डूबे हैं
संगी साथी
भांग सांसों मे
घोल रहा फागुन

तितली के रंग लिए
आया है फागुन
रक्तिम टेसू रंगों से
पलाशी बारिश
बरसा रहा फागुन

होली के रंग संग
गुलालों के सतरंग ले
बस फागुन ही फागुन

९ फरवरी २००९


लम्हा लम्हा

लम्हा लम्हा
काँपते हाथों से
बरसो पुराना खत खोला
खुश्क से मौसम की हवा
ताज़ी-सी लगी
लम्हों की लकडियों से
सर्द यादों के अलाव
यों जल उठे
मानो बाँझ दिनों की
गोद भर गई हो

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