कूक उठी कोयलिया वन रे
शिशिर
त्रास से नग्न डाल पर,
नवल पात निकले तरुवर पर
फाग खेलते सुमन सुवासित,
रंग बिरंगे किसलय दल पर
तरुण विभाकर लगे उमगने
तपन लगे वियोगिन तन रे
कूक उठी कोयलिया वन रे
सुरभित शीतल मंद वसंती
मलयानिल मदमाता डोले
नयन मनोहर सरस कटीले
अल्हड़ नवकलियों ने खोले
डाल डाल पर तितली नाचे
मुदित हुए जोगिन के मन रे
कूक उठी कोयलिया वन रे
द्रुम बेली से सज अलबेली
हरी भरी वसुधा लहराए
फूलों का रस पी मतवाला
गुन गुन करता छलिया गाए
अवनी पर अमृत वर्षा कर
झूम उठे अंबर में घन रे
कूक उठी कोयलिया वन रे
- डॉ. बनवारी लाल मिश्र
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