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        मौसम की जैकेट

मौसम की जैकेट में चार है बटन
खुलते ही लूट लेते हम सबका मन

पीली-सी सरसों की धानी चूनर 
गेहूँ की बाली भी करती सर सर
गदराया महुआ और बौराया आम 
इन सबके कारन है फागुन बदनाम 
ऐसा खुमार छाया झूमे है तन

अलसाये सूरज का चटकीला दिन
चम्पा उदास बैठी बेला के बिन
झरते है पीपल के सूखे-से पात
डाली से रूठा है टेसू बिन बात
सबको मनाने का करले जतन

सूखे अबीर संग गीला गुलाल
कर बैठा गोरी के गालों को लाल
चौखट पे ढोलक मंजीरा बजे
महफ़िल में फगुआ की धुन भी सजे
होली में बाबा भी निकले बनठन

- वत्सला पाण्डेय  
१ मार्च २०२३
   

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