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फागुन का गीत |
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होली के रंग अंतर्मन के
ऋषि-कृषि
औ' त्योहार
टेसू खिला, बौर बौराया
सरसों पीली सेज
हवा गुनगुनी, ऋतु सुहानी
धूप पकड़ रही तेज
नंदगांव के छोरे चंचल
बरसाने की नार
लट्ठमार की मस्त होली
पर कभी न
होती रार
डूंगरपुर में अंगारों पर
चलना दुख की हार
पत्थर मार, फूलमार होली
इसके कई प्रकार
कामदेव का पुनर्जन्म ओ
मनु ने लिया अवतार
हुआ उद्धार पूतना का
सब झूमें
करें विहार
- मधु संधु
१ मार्च २०२३ |
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