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        होली का उल्लास

अंतरिक्ष से ग्रह-मंडल रंग धरा पर लाते
होली का उल्लास लिए गीत मधुर गाते

टिमटिम नयन शुक्र शनि के
करें ठिठोली ऐसे
गुरू की नजर पड़ी जैसे ही
होश ठिकाने वैसे
धरणी का मुख लाल हुआ
सँकुची लज्जा के नाते

रंगों के छींटे इंद्रधनुष
हम सब पर बरसाते
यहाँ हवा की मदहोशी में
छोरे डूबे जाते
राग रंग में हर्षित होकर
होली पर्व मनाते

नभ में लीला कान्हा की
यों निहारिका सुध खोती
भू पर तारे नृत्य करें
चमके उल्का औ' मोती
गगन गूँजता मुरली से
रसमय सुर सबको भाते

- हरिहर झा
१ मार्च २०२३
   

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