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        होली में रंगों ने

होली में रंगों ने सबको
फि‍र मिलवाया
 
रिश्‍तों में धुँधली कालिख को ढकती आई
अपनों की गरिमा रेखांकित करती आई
रंगों की फुहार में फूटे दुख के छाले
मन के सारे जो गुबार थे हरती आई
होली में रंगों ने सबको
गले लगाया
 
जाती सरदी की ऋतु की ठंडक बाकी है
मिले गले बरसों में लगा महक बाकी है
आँखों से जब छलक उठे पैमाने उनके
लगा समंदर में अब तलक नमक बाकी है
होली के रंगों में फिर से
दिल भर आया
 
नफ़रत को रंगों से अकसर देख हारते
अकसर हँसते लोग और शेखी बघारते
जाने किस मिट्टी का माधो है यह 'आकुल’
मल-मल आँखें कभी देखता रंग झाड़ते
होली ने रंगों का चश्मा
खूब चढ़ाया

- आकुल
१ मार्च २०२३

   

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