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यों तो भारतवर्ष है,
त्योहारों का देश
लेकिन है सबके लिए, होली बहुत विशेष
होली की रंगत चढ़ी, बूढ़े हुए जवान
खुशहाली के रंग रंगा, अपना हिंदुस्तान
हो अधर्म-अनीति का, कितना भी उन्माद
जल जाती है होलिका, रह जाते प्रहलाद
दिन फागुन सा हो गया, रातें हुईं गुलाल
तुम आई घर हो गया, पाकर तुम्हें निहाल
स्वर्ग-लोक से देखते, सकल धरा सर्वेश
ब्रज की गलियों सा रंगा, पूरा भारत देश
बरसाना की गोपियाँ, नंदगाँव के ग्वाल
उड़ा रहे हैं साथ में, मिलकर स्नेह-गुलाल
अंग अंग है डोलता, बदल-बदल कर रंग
सबके मन को छू रहा, फागुन का सत्संग
- सत्यशील राम त्रिपाठी
१ मार्च २०२३ |