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रंगों में तरुणाभ है, और
छुपी मनुहार
रिश्तों को दे ताजगी, यह अनुपम त्यौहार
रंगों में सद्भावना, रंगों में मुस्कान
लगता है प्रभु से मिला, सृष्टि को वरदान
रंगों में अनुराग है, इसमें है विश्वास
रंग दिलों में भर रहे, इक पावन एहसास
रंगों में बंधुत्व की, सोंधी-सोंधी गंध
रंग हृदय से देखते, करके आँखें बंद
रंगों में ही दीखता, जीवन का मधुमास
रंग सभी को जोड़ते, करें दूर संत्रास
रंगों में सुरताल है, रंगों में संगीत
जैसे कृष्णकन्हाई की, हो राधा से प्रीत
रंगों में झंकार है, ज्यों वीणा के तार
इसमें नवदर्शन लगे, औ' गीता का सार
रंगों में किलकारियाँ, हर्षित हर आवाज
रंग बाँधने आ गए, रिश्तों के सिर ताज
- सतीश उपाध्याय
१ मार्च २०२३ |